लीची के हब में पड़ी प्रकृति की मार, पेड़ पर कम लदे फल अब टूटकर हो रहे हैं बर्बाद

लीची के हब में पड़ी प्रकृति की मार, पेड़ पर कम लदे फल अब टूटकर हो रहे हैं बर्बाद


लीची के हब में पड़ी प्रकृति की मार, पेड़ पर कम लदे फल अब टूटकर हो रहे हैं बर्बाद


लीची के हब में पड़ी प्रकृति की मार, पेड़ पर कम लदे फल अब टूटकर हो रहे हैं बर्बाद


लीची के हब में पड़ी प्रकृति की मार, पेड़ पर कम लदे फल अब टूटकर हो रहे हैं बर्बाद


बेगूसराय, 09 मई (हि.स.)। मौसमी फल लीची का नाम सुनते ही हर किसी के मुंह से लार टपकने लगता है, हर लोगों की इच्छा होती है कि नाम लेते ही लीची मिल जाए। बसंत आते ही पेड़ पर जब मंजर लगता हैं तो फल उत्पादक किसान खुश हो जाते हैं। बिहार में मुजफ्फरपुर के बाद बेगूसराय का बदलपुरा गांव लीची का सबसे बड़ा उत्पादक है।

प्रत्येक साल बदलपुरा का लीची आसपास के जिला नहीं, उत्तर प्रदेश, असम और पश्चिम बंगाल के बाजारों तक भी जाता रहा लेकिन इस वर्ष एक बार फिर लीची उत्पादकों पर प्रकृति की मार पड़ी है। पिछले दो साल से कोरोना लॉकडाउन के कारण बाहर से कोई व्यापारी नहीं आए थे तो किसानों ने किसी तरह से औने-पौने दाम पर स्थानीय बाजार में लीची भेजा। इस वर्ष जब सब कुछ सामान्य हुआ और लीची पर बसंत आते ही मंजर लदे तो किसानों के चेहरे खिल उठे थे। किसानों को उम्मीद थी कि इस बार फिर दूर-दूर के व्यापारी आकर लीची ले जाएंगे, वही बेगूसराय में पेप्सी का प्लांट लगा है और मुख्यमंत्री द्वारा उसमें लीची प्रोसेसिंग की भी घोषणा की गई है तो पेप्सी वाले भी लीची खरीदेंगे लेकिन प्रकृति की मार ने किसानों के सभी मंसूबे पर पानी फेर दिया। ना तो बाहरी व्यापारी आए और ना ही पेप्सी वाले खरीदने के लिए आए हैं। पिछले वर्षों की तुलना में इस बार 25 से 30 प्रतिशत फल भी नहीं है, जो फल है भी तो वे बढ़ नहीं सके और छोटे-छोटे फल ही अब पकने लगे हैं। जिसके कारण दूरदराज की बात तो दूर स्थानीय व्यवसायी भी आकर लौट जाते हैं।

किसान राम विनय सिंह ने बताया कि बिहार में मुजफ्फरपुर के बाद बेगूसराय का हमारा गांव बदलपुरा लीची उत्पादन का हब है। यहां एक हजार एकड़ से अधिक में लीची की खेती होती है। लीची का अच्छा पैदावार देख किसानों ने बड़े पैमाने पर लीची का बगीचा लगाया, यह सच है कि आमदनी अच्छी होती थी। लेकिन पिछले दो-तीन वर्षों से कोरोना में सब कुछ बर्बाद हो गया, दो साल कोरोना वायरस के कारण बाहरी व्यापारी नहीं आ सके तो उचित दाम नहीं मिल सका।

इस बार कोरोना का कहर कम होने के बाद जब आवाजाही सामान्य हुई तो उम्मीद थी बाहर से व्यापारी आएंगे, कुछ में व्यापारी आए भी लेकिन पेड़ में आधा से भी कम लीची देखकर सहम गए। उसमें भी समय से पहले प्रचंड गर्मी आ जाने के कारण लीची का फल बढ़ नहीं सका। सरकारी स्तर पर पानी की कोई व्यवस्था नहीं है, निजी पंपसेट से पेड़ की नमी बनाकर, रासायनिक दवा का प्रयोग कर लीची को बचाने और फल बढ़ाने का प्रयास किया। लेकिन ना तो लीची बढ़ सकी और नहीं बच सकी, ऊपर से पिछले दिनों आई तेज आंधी ने सब कुछ बर्बाद कर दिया। पहले से ही सूख और टूट कर गिर रहा लीची और बर्बाद हो गया। हालत यह है कि लागत तो दूर अपनी मजदूरी भी नहीं आ पा रही है।

किसानों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार किसानों की आय दोगुनी करने का प्रयास कर रही है। इसके लिए लगातार काम भी हो रहे हैं, लेकिन हम लीची उत्पादकों के लिए धरातल पर कुछ नहीं किया जा रहा है। जिससे प्रशासनिक अदूरदर्शिता तथा प्रकृति की मार झेलने के लिए हम सब किसान मजबूर हैं। लीची और आम उत्पादक किसानों का कहना है कि इस बार लोकल आम और लीची मिलना मुश्किल है। लीची और आम का फसल स्थानीय स्तर पर क्यों कम हो रहा है, दवाओं का बेहतर प्रभाव क्यों नहीं पड़ रहा है, इसके लिए शासन-प्रशासन को प्रयास करना चाहिए। यहां के लीची को जीआई टैग देकर किसानों को बढ़ावा देना चाहिए, लेकिन इस और देखने की फुर्सत नहीं किसी को नहीं है। अगर यही हालत रही तो लीची के लिए दूर-दूर तक चर्चित बदलपुरा एवं आसपास के किसान लीची की खेती से मुंह मोड़ने लगेंगे।

इस संबंध में कृषि विज्ञान केंद्र बेगूसराय खोदाबंदपुर के वरीय वैज्ञानिक और प्रधान डॉ. रामपाल ने बताया कि लीची और आम उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए किसानों को बराबर जागरूक किया जाता है, उन्हें दवा और उचित नहीं बनाए रखने की जानकारी दी जाती है। अभी लीची में फल छेदक कीट के नियंत्रण के लिए ईमामेक्टिन बेंजोएट पांच प्रतिशत एसजी 0.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। आम में इस समय कोईलयी बीमारी देखने को मिल रहा है, इस बीमारी से फल का निचला किनारा काला पड़ जाता है और फल गिर जाता है। इसके नियंत्रण के लिए बोरेक्स 20 प्रतिशत एक से डेढ़ ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें।

हिन्दुस्थान समाचार/सुरेन्द्र

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