दीवाली नजदीक आई, उम्मीद पर कुंभकारों के यहां रफ्तार भर रहे चाक

विनोद मिश्रा
बांदा।
दीपावली पर बाजार में अबकी देसी दियाली व खिलौनों की  धूम की आशा और चाइनीज झालर व मोमबत्ती के बहिष्कार उम्मीदों से कुंभकारों को अपने बुझे किस्मत के दिए फिर टिमटिमानें की उम्मीद है। बाजार में अबकी देसी दियाली और खिलौनों की धूम की संभावना है। कुंभकारों के घरों में रातोंदिन तैयारियां की जा रही हैं। देसी व इलेक्ट्रानिक चाक पर दियाली बन रही हैं।

हाइटेक युग में भले ही रंगबिरंगे बल्ब अपनी खूबसूरती बिखेर रहे हों, लेकिन कुंभकार के चाक से बने मिट्टी के दीये आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में प्राचीन सभ्यता और परंपरागत रीति रिवाजों को जिंदा रखे हुए है। इस पुरातन परंपरा से ही कुंभकारों की यह कला जीवित है। अबकी चाइनीज झालरों, मोमबत्ती, खिलौनों और बल्बों के बहिष्कार से मिट्टी के दीये बनाने वाले कुंभकारों के फिर से अच्छे दिन आने की उम्मीद बढ़ी है। दीपावली करीब आते ही मिट्टी से बने दीयों की मांग बढ़ने लगी है। गांवों में इस समय कुंभकार की कला चाक पर देखने को मिल रही है। अतर्रा निवासी अयोध्या प्रसाद ने बताया कि उनका यह काम पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है। अब मिट्टी की परेशानी अधिक होती है। दीपक के अलावा वे कुल्हड़ आदि सीजन के हिसाब से बनाते हैं।
कुम्हार राम आसरे प्रजापति का कहना है की दीपावली के एक माह पहले से घरों पर सुबह से शाम तक मिट्टी के दीये, बर्तन आदि बनाने का काम चल रहा है। चाइनीज झालरों के बहिष्कार से इस वर्ष मिट्टी के दीयों की अधिक बिक्री होने की उम्मीद है।

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