देश को मिलें देवकीनंदन पांडे- विनोद कश्यप जैसे श्रेष्ठ समाचार वाचक

आर.के. सिन्हा

यह संभव है कि देश की मौजूदा युवा पीढ़ी को यकीन न हो कि खबरिया चैनलों के आने से पहले “आकाशवाणी” से प्रसारित होने वाले समाचारों को करोड़ों भारत वासी अपने घरों, बाजारों और अन्य स्थानों पर ध्यानपूर्वक सुना करते थे। देवकीनंदन पांडे, अशोक वाजपेयी, विनोद कश्यप, अनादि मिश्र, रामानुज प्रसाद सिंह, इंदु वाही जैसे आकाशवाणी के समाचार वाचकों को सारा देश ही जानता था और उनकी आवाज को पहचानता था । माता-पिता अपने बच्चों को कहा करते थे कि वे देवकीनंदन पांडे और अन्य समाचार वाचकों की बुलंद आवाज में सुनाई जा रही खबरों को जरूर सुनें ताकि वे शब्दों का शुद्ध उच्चारण सीख सकें।

दरअसल एक दौर था जब सारा देश ही “आकाशवाणी” से प्रसारित होने वाली खबरों को गंभीरता से सुनता था और उन पर गंभीरतापूर्वक चर्चाएं हुआ करती थी। हालांकि देवकीनंदन पांडे जी ने हजारों बार खबरें पढ़ीं, पर नेहरु जी और श्रीमती इंदिरा गांधी की मृत्यु के समाचारों को पढ़ते हुए उनके हाथ कांप रहे थे। वे ऐसा स्वंय बताते थे। इतनी बड़ी शख्सियतों की मृत्यु का सामाचार देश को प्रसारित करना कोई आसान काम तो नहीं था। देवकीनंदन पांडे के साथी उनसे नुक्ते के प्रयोग से लेकर शब्दों के सही उच्चारण को सीखा करते थे। पांडे जी मौजूदा उत्तराखंड के मूल निवासी थे।

देवकी नंदन पांडे के साथ दशकों आकाशवाणी में काम करने वाले रामानुज प्रताप सिंह के हाल ही में हुए निधन से  कह सकते हैं कि आकाशवाणी की हिन्दी सेवा के स्वर्ण काल के अंतिम हस्ताक्षर  की भी विदाई हो गई है। वे सन 1961 में पटना से आकाशवाणी दिल्ली में आ गए थे। राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर के भतीजे रामानुज प्रसाद सिंह का समाचारों को पढ़ने का अलग विशिष्ट अंदाज था। उनका उच्चारण भी अतुलनीय था। वे पटना लॉ कॉलेज से थे। उनकी पत्नी मणिमाला जी आकाशवाणी की नेपाली भाषा की सेवा में समाचार वाचक थीं।

आकाशवाणी की लोकप्रिय समाचार वाचिकाओं में विनोद कश्यप भी थीं। 30 वर्षों से अधिक समय तक अपनी आवाज़ से समाचारों को घर-घर पहुंचाने वाली विनोद जी 1992 मे आकाशवाणी से रिटायर हुईं थीं। उनकी 2019 में मृत्यु हो गई थी। विनोद कश्यप ने ही देश को भारत-चीन युद्ध, भारत पाकिस्तान युद्ध (1965, 1971),  और लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के समाचार सुनाए थे। विनोद कश्यप को देवकीनंदन पांडे के बाद आकाशवाणी के सबसे लोकप्रिय समाचार वाचक के रूप में देखा जाता था। देवकीनंदन पांडे और विनोद जी प्राय: आकाशवाणी के सुबह 8 बजे या फिर रात 9 बजे के 15 मिनट के बुलेटिनों को पढ़ा करती थीं। इन दोनों बुलेटिनों को करोड़ों लोग सुन कर देश-दुनिया की हलचलों को जान पाते थे। विनोद कश्यप के अलावा, उस दौर में इंदु वाही,जयदेव त्रिवेदी, मनोज मिश्र, अनादि मिश्र वगैरह भी लोकप्रिय न्यूज रीडर हुआ करते थे। ये सच है कि देवकीनंदन पांडे, अशोक वाजपेयी, विनोद कश्यप आदि के समाचार बुलेटिन सुनने वालों की भाषा सुधरने लगती थी । इन सबों की वाणी में सरस्वती का वास होता था।

आकाशवाणी के महान समाचार वाचकों की चर्चा हो और अंग्रेजी भाषा के समाचार वाचक मेलविल डिमेलो का नाम छूट जाए यह तो नहीं हो सकता। पंडित जवाहरलाल नेहरु ने आकाशवाणी से 30 जनवरी, 1948 को रात 8 बजे देश-दुनिया को रुधे गले से महात्मा गांधी के संसार से चले जाने का समाचार दिया। उसके फौरन बाद 35 साल के एंग्लो इंडियन नौजवान मेलविल डिमेलो ने अंग्रेजी के समाचार बुलेटिन में विस्तार से महात्मा गांधी की हत्या संबंधी खबर सुनाई। उन्होंने ही बापू की महाप्रयाण यात्रा का आंखों देखा हाल सुनाया था । आकाशवाणी तो पहली बार ही किसी शख्यिसत की अंतिम यात्रा की कमेंट्री का प्रसारण कर रही थी।

उस शवयात्रा का आंखों देखा हाल जयपुर में जसदेव सिंह नाम का एक नौजवान भी सुन रहा था। उसने उसी दिन तय कर लिया था कि वह भी रेडियो में कमेंट्री के पेशे से जुड़ेगा। वह हुआ भी भी। जसदेव सिंह जी बताते थे कि मेलविल डिमेलो ने लगातार सात घंटे तक कमेंट्री सुनाई थी । उन्होंने सारे माहौल को अपने शब्दों से जीवंत कर दिया था। उनकी जुबान में सरस्वती बसती थी। उस भावपूर्ण कमेंट्री पर करोड़ों हिन्दुस्तानी रोए थे।

बेशक बापू की शवयात्रा की कमेंट्री करने के बाद सारा देश मेलविल डिमेलों के नाम से अच्छी तरह वाकिफ हो गया था। वे बाद के वषों में लगातार गणतंत्र दिवस परेड की भी कमेट्री करते थे। डिमेलो साहब की 1991 में मृत्यु हो गई थी।  वैसे अंग्रेजी में सुरजीत सेन और बरून हलदार भी बेहतरीन समाचार वाचक थे।

बेशक, आकाशवाणी के अलावा, दूरदर्शन के भी कुछ समाचार वाचकों का स्तर बहुत ऊंचा था। इस लिहाज से तेलुगू भाषी जे.वी.रमण का नाम लेना होगा। वे दिल्ली विश्वविद्लाय के शिवाजी कॉलेज में इक्नोमिक्स पढ़ाते थे। वे शाम के वक्त दूरदर्शन चले जाते थे। उन्हें हिन्दी न्यूज रीडर के रूप में अखिल भारतीय स्तर पर पहचान मिली। वे जब तक दूरदर्शन से जुड़े रहे तब तक रात 8 बजे का बुलेटिन बहुत अहम माना जाता था। वे हफ्ते में कम से कम चार दिन 8 बजे के बुलेटिन को पढ़ा करते थे और उसे पूरा देश देखता था।  तब समाचारों का मतलब दिन भर की घटनाओं को दर्शकों के समक्ष बिना किसी निजी राय या दृष्टिकोण के परोसा जाना था। समाचार जैसे होते थे वैसे ही प्रस्तुत कर दिए जाते थे। यह वह समय था जब दूरदर्शन पर उच्चारण तथा प्रस्तुति बहुत महत्व रखता था। दूरदर्शन पर खबरें पढ़ने वाले समाचार वाचकों में एक सलमा सुल्तान भी थीं। वे शालीनता से खबरें पढ़ा करती थीं। उस दौर में दूरदर्शन के समाचार वाचक देवकी नंदन पांडे और अशोक वाजपेयी के खबरों के पढ़ने के स्टाइल के कायल थे। तब दूरदर्शन समाचार के भीष्म पितामह गंगाधर शुक्ल जी होते थे। खबरों और साहित्य की दुनिया पर जबरदस्त पकड़ थी उनकी। वे किसी के द्वारा गलती होने पर डांटते या अपमानित नहीं करते थे, समझाते थे। उन्होंने दूरदर्शन न्यूज की कई पीढ़ियों को तैयार किया।

समझ नहीं आता कि अब हमारे यहां श्रेष्ठ समाचार वाचक क्यों नहीं आ रहे ? आखिर कमी किस स्तर पर है?  देश फिर से स्तरीय समाचार वाचकों से देश-दुनिया का हाल जानना चाहता है।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

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