रुबी बघेल ने कोविड काल में डिप्रेशन का शिकार लोगों को जीने की राह दिखाई

आगरा। कोविड की दूसरी लहर का वह समय ही काफी कठिन था। हर रोज किसी न किसी अपने के मरने की खबर लोग सुनकर विचलित हो जाते थे। उस समय तो बस खुद को बचाने की जुगत में लोग थे। तमाम लोग मानसिक रूप से प्रेशर में आ गए। ऐसे समय में जिला महिला चिकित्सालय लेडी लॉयल की अर्श काउंसलर रुबी बघेल ने लोगों को जीने की राह दिखाई। कोविड की दहशत से सिर्फ आगरा वालों को नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश, गुड़गांव, हैदराबाद, इंदौर तक से आई कॉल के जरिए काउंसलिंग कर डर को दूर किया। उन्होंने करीब 2500 लोगों की काउंर्संलग कर उनके अंदर से कोरोना का डर निकाला।

कोरोना की दूसरी लहर ने सभी को परेशान कर रख दिया। लाखों लोग पॉजिटिव हुए। न जाने कितने लोग कॉल के गाल में समा गए। हर किसी को अपनी जान बचाने की परवाह थी। दूसरी लहर में कोविड से मरने वालों की संख्या ज्यादा थी। इसलिए, लोग काफी भयभीत थे। कोरोना की चपेट में आने वाले सबसे ज्यादा परेशान थे। ऐसे लोगों को सही राह पर लाने का काम अर्श काउंसलर रुबी बघेल ने किया। उन्होंने करीब एक हजार बच्चों समेत 2500 लोगों की काउंसलिंग की। उन्हें बताया कि कोरोना से जंग को जीता जा सकता है। रुबी बघेल ने बताया कि निरंतर दवाई ओर काउंसलिंग के जरिए कोविड को तमाम लोगों ने हरा दिया।

रात में दो बजे आते थे फोन, बोलते थे सांस लेने में दिक्कत हो रही

रुबी बघेल बताती हैं कि कोविड के संक्रमण के समय में पूरी शिद्दत के साथ सेवा भाव को किया। लखनऊ की एक फैमिली का रात में दो बजे तक कॉल आती थी। वह बताते थे कि सांस लेने में दिक्कत आती थी। उनके अंदर कोरोना फोबिया हो गया था। काउंर्संलग के जरिए उनके अंदर से कोरोना का भय निकाला। 

परिवार के साथ कोविड काल में जॉब करना चुनौतीपूर्ण

पूरे दिन मरीजों की काउंसलिग करने वाली रुबी बघेल शाम को घर पर परिवार के पास लौटती थी तो पूरी सावधानी बरतती थी। नहाने के बाद कपड़े बदलकर आधा घंटा इंतजार करने के बाद ही परिवार के बीच में जाती थी। इस बीच खुद को सुरक्षित रखने के लिए पूरी डायट ली। योगा, सोशल डिस्टेसिंग समेत कोविड नियमों का पालन किया।उन्होंने बताया कि ड्यूटी टाइम के बाद भी फोन कॉल लगातार आते रहे। उनके परिवार के सदस्यों और बच्चों ने उनके कार्य में काफी सपोर्ट किया। जिसके चलते वह अपने काम को बखूबी निभा पाई।

केस एक: कोरोना फोबिया से बच्चों को बाहर निकाला

उस समय बच्चों में कोरोना फोबिया हो गया था। वह घर से बाहर निकलने में डरते थे। उन्हें लगता था कि दरवाजे के बाहर कदम रखा तो कोरोना जकड़ लेगा। ऐसे बच्चों की काउंसलिंग करने के बाद उन्हें जागरूक किया। बड़ी संख्या में बच्चों को कोविड फोबिया से बाहर निकाला।

केस टू

-दयालबाग में एक परिवार के चार सदस्य कोविड से संक्रमित हो गए थे। उस समय कालोनी में कोरोना से मौत होने के बाद पूरा परिवार सदमें में था। उन्हें लगता था कि अब वह भी नहीं बच पाएंगे। बेटी कीर्ति बताती है कि उनके पापा की उम्र 60 साल है। मां 55 वर्ष की है। दो बहनें भी हैं।कोरोना फोबिया के चलते पूरा परिवार काफी घबराया था। जिला अस्पताल के डाक्टर से रुबी बघेल का नंबर लेकर बात की। कीर्ति ने बताया कि पापा को कोरोना फोबिया हो गया था। वह बार-बार अपनी पल्स और ऑक्सीजन लेवल को चेक करते थे। रुबी बघेल ने सबसे पहले कीर्ति से हाल-चाल जाना। फादर को मानसिक तनाव के बारे में बताया। रुबी ने सबसे पहले काम बांटने का सुझाव दिया। जिससे पूरा परिवार के लोग व्यस्त रहें। योगा करने और ध्यान लगाने के बारे मे बताया। सुबह जल्दी जागना है। फिर सभी हल्की गुनगुनी धूप में बैठकर चाय पीए, सभी साथ में बैठकर बातचीत करें, जोक पढ़ने हंसाने का प्रयास करें,सही समय पर दवाई का सेवन करें, खुश रहे, कोविड प्रोटोकॉल का पालन करें। अब हम सब पूरी तरह स्वस्थ हैं l

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