असद को कभी थी पैसों की किल्लत, अब दुबई में लाखों की सैलरी, 'एक रूपये' का अहम योगदान

नई दिल्ली। बिहार के रोहतास जिले के बिक्रमगंज के असद खान की कहानी आपके लिए भी प्रेणादायक हो सकती है। 

मोहम्मद सबील अहमद खान के बेटे असद की सफलता में उनकी मेहनत जितना ही योगदान उनके मां-बाप की दुआओं और सहयोग का है। उन दिनों असद की फैमिली की माली हालत उतनी अच्छी नहीं थी। हिंदी मीडियम से पढ़ाई की। उसके बाद गुरु आरके श्रीवास्तव का साथ मिला और आज असद यूएइ की एक कंपनी में इंजीनियर के पद पर कार्यरत है। इससे पहले भारत में HCL में कार्यरत थे।

आरके श्रीवास्तव के शैक्षणिक संस्थान में उनके सानिध्य में पढकर उन्होंने सफलता हासिल की है। उनका परिवार हमेशा गुरु आरके श्रीवास्तव की प्रशंसा करते नहीं थकता। 

यूपीयूकेलाइव से बातचीत में आरके श्रीवास्तव बताते हैं कि असद मेरे पहले बैच का स्टूडेंट है, जब टीबी की बीमारी के चलते ईलाज के दौरान डॉक्टर ने मुझे घर पर रहकर आराम करने का सलाह दी थी। घर पर रहते रहते बोर होने लगा तो गाँव के स्टूडेंट्स को पढाना चालू किया। 

आज जब दुबई से असद का कॉल आया तो बहुत ख़ुशी मिली। घंटो बातचीत में असद ने बताया कि सर आप हम जैसे स्टूडेंट्स के लिये फरिश्ता बनकर आये थे।  गाँव में इंजीनियरिंग का माहौल बनाना और स्टूडेंट्स को सफल बनाना किसी चमत्कार से कम नहीं। 

बातचीत के वक्त असद ने कहा कैसे सर आप पूरी रातभर लगातार हमलोगों को पढाते थे , कब रात से सुबह हो जाता पता ही नही चलता था। 

आज आपके द्वारा कराये गये मेहनत का ही देन है की हम इस उपलब्धी तक पहूँचे है।   आरके श्रीवास्तव ने कहा आप जैसे स्टूडेंट्स पर काफी गर्व होता है जो अपनी मिट्टी से आज भी जुड़े है। आप देश के उन सभी स्टूडेंटस के लिये रॉल मॉडल जो गाँव में  कम सुविधा में रहकर भी इंजीनियर बनने का सपना देखते है और उस सपने को साकार करते है। 

आरके श्रीवास्तव ने कहा कि आपके माता-पिता और आप पर हम सभी को गर्व है, आपके हौसलो से यह सीख मिलता है कि- "जीतने वाले छोड़ते नहीं  , छोड़ने वाले जीतते नहीं "

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