जन्म और मृत्यु जीवन के दो सबसे अनमोल पहलू है,जिस तरह एक जीव के जन्म लेने से उस जगह ख़ुशी की लहर दौड़ती है उसी प्रकार एक जीव की मौत के बाद वहा पर सन्नाटा फेल जाता है। मौत के समय को लेकर किए गए शोध में बहुत ही खतरनाक आंकड़े सामने आए हैं। वैज्ञानिकों ने शोध में पाया है कि दिन के समय की अपेक्षा रात में तड़के सुबह तीन से चार के बीच का समय मौत को सबसे ज्यादा प्रिय होता है। शोध में कहा गया है कि इस दौरान शैतानी शक्तियां सबसे ज्यादा शक्तिशाली होती हैं और इंसान का शरीर सबसे ज्यादा कमजोर होता है।
आमतौर पर दुनिया की कई संस्कृतियों और धार्मिक मान्यताओं के हिसाब से रात का तीसरा पहर बहुत खतरनाक माना जाता है। तीसरा पहर यानि रात तीन से सवेरे छह बजे के बीच का वक्त। इससे जुड़े तमाम तथ्यों को हमने जुटाने का प्रयास किया गया ताकि पता चल सके कि क्या वाकई रात में 3 से 4 के बीच का वक्त इंसान के लिए बहुत खतरनाक होता है? और मेडिकल साइंस इसके बारे में क्या कहता है?
तो शोधकर्ताओं ने खोजने पर कुछ ऐसे दावों के बारे में बताया है कि अस्थमा के अटैक का खतरा दिन के आम वक्त की अपेक्षा 3 से 4 के बीच 300 गुना ज्यादा होता है। इसका कारण बताया जाता है कि इस वक्त एड्रेनेलिन और एंटी-इंफ्लेमेटरी हार्मोंस का उत्सर्जन शरीर में बहुत घट जाता है, जिससे शरीर में श्वसनतंत्र बहुत ज्यादा सिकुड़ जाता है। दिन की अपेक्षा इस वक्त ब्लडप्रेशर भी सबसे कम होता है, यह भी एक वजह है कि सवेरे 4 बजे सबसे ज्यादा लोगों की मौतें होती हैं।
एनवाईयू लैंगोन मेडिकल सेंटर की डॉ. रोशनी राज कहती हैं कि सवेरे 6 बजे कोर्टिसोल हार्मोन के तेजी स्त्राव के कारण खून में थक्के जमने और अटैक पड़ने का खतरा ज्यादा होता है, लेकिन सबसे ज्यादा ब्लडप्रेशर रात में 9 बजे होता है, यह भी मौत का कारण बन सकता है।
रिसर्च में यह भी पता चला है कि चौदह फीसदी लोगों के अपने जन्मदिन के दिन ही मरने की संभावना होती है, जबकि 13 फीसदी लोग कोई बड़ी पेमेंट पाने के बाद मरने की हालत में होते हैं। लेकिन 40 सालों से प्रैक्टिस कर रहे डॉ. चंदर असरानी मानते हैं कि कमजोरी के चलते मौत की बात पूरी तरह से गलत है। वे कहते हैं कि सवेरे 6 से दोपहर 12 के बीच हार्टअटैक की संभावना बहुत ज्यादा होती है। ऐसा ही रात में सोने के दौरान भी होता है, लेकिन इसकी वजह स्लीप एप्निया होती है, यानि एक ऐसी बीमारी है जिसमें सोने के दौरान लोगों की सांसें रुक जाती हैं।
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