भारत में देवी देवताओं की पूजा पुराने जामाने से चली आ रही है। यहां अनेकों मंदिर है जो हर हर मोड़ नुकड़ पर मिलते है। जिनमे अलग अलग देवी देवता विराजमान है। देवी देवताओं की पूजा होती है यह तो हम सुनते रहते है और करते भी है। लेकिन एक जगह ऐसी है जहां किसी देवी और देवता की नही बल्कि कुत्ते की पूजा होती है।
# छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के खपरी गांव में 'कुकुरदेव' नाम का एक प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर में किसी देवी-देवता की नहीं बल्कि कुत्ते की पूजा होती है। इस मंदिर में दर्शन करने से कुकुर खांसी नहीं होती और इसके साथ ही कुत्ते के काटने का भय भी नहीं रहता।
मंदिर को बनाने की वजह:
# यहां के बाशिंदों का मनना है की, पहले यहां बंजारों की बस्ती थी। उस बस्ती में मालीघोरी नाम का एक बंजारा रहता था और उसके पास एक पालतू कुत्ता था। गांव में अचानक अकाल पड़ने के कारण बंजारे को अपने कुत्ते को साहूकार के पास गिरवी रखना पड़ा।
# साहूकार के घर चोरी हो गई। कुत्ते ने यह देख लिया था कि चोर वो सामान कहां छुपा रहे हैं। सुबह कुत्ता साहूकार को उस जगह पर ले गया जहां चोरी का सामान था। इससे खुश होकर साहूकार ने इस घटना का उल्लेख एक कागज पर किया और उसे कुत्ते के गले में बांधकर अपने असली मालिक के पास जाने के लिए मुक्त कर दिया।
# बंजारे ने अपने कुत्ते को वापस आते देखा तो गुस्से में उसे मार डाला। उसके बाद बंजारे ने कुत्ते के गले में बंधे कागज को पढ़ा। उसे पढ़कर बंजारे को अपनी गलती का एहसास हुआ और कुत्ते की याद में उसने मंदिर प्रांगण में कुत्ते की समाधि बनवा दी तब से यह स्थान कुकुरदेव मंदिर के नाम से विख्यात है।
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