आयुर्वेद में मटके के पानी को शीतल, हल्का, स्वच्छ और अमृत के समान माना गया है। यह प्राकृतिक जल का स्रोत है जो ऊष्मा से भरपूर होता है और शरीर की गतिशीलता को बनाए रखता है।
सुबह के समय इस पानी के प्रयोग से हृदय व आंखों की सेहत दुरुस्त रहती है। गला, भोजननली और पेट की जलन को दूर करने में मटके का पानी काफी उपयोगी होता है। जिन लोगों को अस्थमा की समस्या हो वे इस पानी का प्रयोग न करें क्योंकि इसकी तासीर काफी ठंडी होती है जिससे कफ या खांसी बढ़ती है।
जुकाम, पसलियों में दर्द, पेट में आफरा बनने की स्थिति व शुरुआती बुखार के लक्षण होने पर मटके का पानी न पिएं। तली-भुनी चीजें खाने के बाद यह पानी न पिएं वर्ना खांसी हो सकती है। मटके का पानी रोजाना बदलें। लेकिन इसे साफ करने के लिए अंदर हाथ डालकर घिसे नहीं वर्ना इसके बारीक छिद्र बंद हो जाते हैं और पानी ठंडा नहीं हो पाता।
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