राहत का मतलब यह नहीं कि कोरोना गया...

इंदौर। जून की यह पहली तारीख दो जून की रोटी की चिंता करने वालों के लिए राहत लेकर आई है। कोरोना मरीजों के निरंतर घटते सरकारी आंकड़ों पर भरोसा कीजिए, क्योंकि वाकई इन अस्पतालों में वयस्क मरीजों के साथ ही अवयस्क बाल मरीजों की संख्या में कमी आई है।

शहर आधा खुला, आधा बंद जैसा है। यदि मन मचल रहा है कि पूरा शहर फिर से अनलॉक देखें और नाईट लाइफ को इंजाय करें तो बस इतना याद रखना है कि कोरोना गया नहीं है। यदि इस अनलॉक में कोरोना को हराना मन लिया तो फिर महीनों घरों में कैद रहते हुए दाल-रोटी खाना पड़ सकती है।

जिला प्रशासन और तमाम सरकारी विभागों के सैंकड़ों कर्मचारियों से लेकर सरकारी और निजी अस्पतालों के कर्मचारियों से लेकर सरकारी और निजी अस्पतालों के कर्मचारी भी रात-दिन ड्यूटी करते ऊब गए हैं। इन सब पर आरोप लगाना तो बहुत आसान है पर एक पल उनकी जगह अपने को रख कर देखिए तो शायद उनके तनाव, तुनक मिजाजी के कारण भी समझ आ सकते हैं। अपने घर-परिवार की चिंता छोड़ शहर की फिक्र करने वाले ये लोग हैं हम आप के बीच से ही हैं लेकिन इन्हें यदि शहर देवदूत का सम्मान दे रहा है तो इसलिए कि इस महामारी के दौर में ये लोग उन सारी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं जो हम नहीं कर सकते।

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