जीवन के सकारात्मक संबंधों से बढ़ती है 'इम्यूनिटी'

-रविवि के समाजशास्त्र अध्ययनशाला के वेबिनार में विशेषज्ञों ने रखे विचार
-बिछड़ते अपने और संबंधों में बढ़ती दूरियों के बीच
-हमारा सामाजिक सरोकार विषय पर वेबिनार सम्पन्न

रायपुर। कोरोना महामारी के इस संकट काल में हर वर्ग प्रभावित है। कब; कौन अपना  बिछड़ जाए, कहा नहीं जा सकता। एसी स्थिति में जरूरत है अपनों का मनोबल बढ़ाने और सामाजिक सरोकार की। वास्तव में  सामाजिक दूरी को व्यावहारिक तौर पर दूरी मानें न कि मानसिक संबंधों में दूरी रखें। जीवन के सकारात्मक संबंधों से इम्यूनिटी बढ़ती है।

उपरोक्त बातें पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र एवं समाज कार्य अध्ययनशाला द्वारा आयोजित राष्ट्रीय वेबिनार में समाजशास्त्रियों एवं विषय विशेषज्ञों ने कहीं। कार्यक्रम के संयोजक अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष एवं एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. एल.एस. गजपाल ने बताया कि समाजशास्त्र एवं समाज कार्य अध्ययनशाला द्वारा Óबिछड़ते अपने और संबंधों में बढ़ती दूरियों के बीच हमारा सामाजिक सरोकारÓ विषय पर राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। इस वेबिनार के मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के समाजशास्त्र विभाग के प्राध्यापक प्रो. ए.के. जोशी ने कहा कि महामारी के इस दौर में हमें दृढ़ मनोबल की आवश्यकता है और हमें शारीरिक और मानसिक दोनों मोर्चे पर डटे रहना आवश्यक है। कहा जाता है कि जीवन में रिश्तों का होना जरूरी है लेकिन रिश्तों में भी जीवन का होना जरूरी है। हम सामाजिक दूरी का व्यावहारिक तौर पर पालन करें किन्तु पारस्परिक संबंध बनाए रखें जिससे मनोबल बना रह सके। श्री जोशी ने कहा कि  होम आइसोलेशन में भी लोगों की पीड़ा है जिसे संवाद के माध्यम से दूर किया जा सकता है। हमारा सरोकर गांव-गांव में जागरुकता अभियान से होना चाहिए। हमारा सरोकार पड़ोसी से हो न कि व्हाट्सएप गुरू से।
वेबिनार के विशेष अतिथि एच.एस. गौर सेंट्रल यूनिवर्सिटी, सागर के समाजशास्त्र विभाग के प्राध्यापक प्रो. डी.एस. राजपूत ने कहा कि हम कोरोनाकल के इस दौर में हम विश्वास और अपनेपन को न तोड़ें और इसके लिए आवश्यक है सामाजिक सरोकार को सदैव याद रखना। परहित केवल शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक संबंल के रूप में में भी किया जा सकता है। सुरक्षा मामलों के साथ-साथ व्यक्ति के जीवंत होने की आवश्यकता है। वेबिनार के विशेष अतिथि बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल के समाजशास्त्र विभाग के प्राध्यापक प्रो. कुमारेश कश्यप ने कहा कि यह एक ऐसी समस्या है जिसे पूरे विश्व ने एक साथ देखा है और प्रभावित हुआ है। लाकडाउन से हम घर पर रुक गये और स्वयं को व्यस्त रखने अल्टरनेट खोजने लगे। आज व्यक्ति मानसिक रूप से तनाव में है और जरूरत है हर व्यक्ति को आत्मबल की। इस अवसर पर     पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. के.एल. वर्मा ने कहा कि परिवार और समाज के हर पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों तथा सुख-दुख में लोगों की भागीदारी रहा करती थी लेेकिन आज इसकी सीमाएं बंध गई हैं। संकट के इस समय को कुछ लोगों ने अवसर का समय मान लिया जो दुखदायी है। आज जरूरत एक-दूसरे को मानसिक संबल प्रदान करने की है और आत्मबल से इस संकट से सामना किया जा सकता है।
वेबिनार के संयोजक पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष एवं एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. एल.एस गजपाल ने बताया कि माननीय कुलपति प्रो. के.एल. वर्मा के मार्गदर्शन में रविवि परिसर में इस संकट के दौरान कोविड सेंटर स्थापित किया गया एवं प्रभावितों की हरसंभव सहायता की गई। सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए प्रभावितों के लिए दवाइयों, भोजन, ऑक्सिजन बेड, काउसंलिंग, वेक्सीनेशन की व्यवस्था की गई। वेबिनार में विषय विशेषज्ञों ने प्रतिभागियों के सवालों के जवाब भी दिये। वरिष्ठ पत्रकार एवं सहायक प्राध्यापक, कला एवं मानविकी अध्ययनशाला,. मैट्स विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ. कमलेश गोगिया ने कोरोनाकाल में मीडिया की  भूमिका और पडऩे वाले प्रभावों पर अपने विचार रखे। वेबिनार में देश के विभिन्न राज्यों के प्राध्यापक, शोधार्थी, शोधार्थी तथा गणमान्य नागरिक बड़ी संख्या में ऑनलाइन उपसथित थे।
 गोद ग्राम गोमछी में कोई भी पीडि़त नहीं
समाजशास्त्र अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष एवं एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. एल.एस गजपाल ने वेबिनार में बताया कि पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय द्वारा सामाजिक दायित्वों के निर्वहन के तहत गोमछी गांव को गोद लिया गया जहां कोरोनाकाल के दौरान जागरुकता अभियान, दवाओं का वितरण और वेक्सीनेशन जैसे कार्यक्रम सफलतापूर्वक आयोजित किये गये। वेबिनार में गांव के सरपंच श्री बंजारे एवं गांव की सशक्त महिला श्यामा ने बताया कि गांव में सभी स्वस्थ हैं और मितानिन के सहयोग के दवाओं का वितरण किया जा रहा है। सभी को वेक्सीन लगाई गई है और साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जा रहा है। विश्वविद्यालय के प्रयासों से यह संभव हो सका है।

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