विकास की भेंट चढ़ गया बाबा विश्वनाथ धाम का सैकड़ों साल पुराना अक्षयवट वृक्ष

राकेश पाण्डेय
वाराणसी।
श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र स्थित अक्षयवट हनुमान मंदिर स्थित विशाल अक्षयवट वृक्ष बुधवार को धराशाई हो गया। वाराणसी के महंत परिवार का आरोप है कि विश्वनाथ मंदिर प्रशासन के लापरवाही से वट वृक्ष गिर गया। दरअसल, प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रॉजेक्ट विश्वनाथ धाम कॉरिडोर निर्माण कार्य के दौरान दायरे में आए अक्षयवट हनुमान और शिव सभा मंदिर में आया है।

सुरक्षा का लिखित आश्वासन देकर मिटा दिया अफसरों ने प्राचीन इतिहास
मंदिर महंत परिवार से अनुमति लेकर विश्वनाथ मंदिर प्रशासन ने लिखित आश्वासन के साथ सुंदरीकरण का कार्य शुरू कर दिया गया था। शुरू में ही महंत परिवार ने अधिकारियों को अवगत कराया था कि वृक्ष और अंजनी पुत्र के विशाल विग्रह को संरक्षित और सुरक्षित रखते हुए ही कार्य किया जाए।

अफसरों की अनदेखी से गर्त मे पहुँच गया अक्षयवट का इतिहास
अधिकारियों ने आश्वासन दिया था कि सुरक्षित और संरक्षित किया जाएगा। पर निर्माण कर रही पीएसपी कंपनी और मंदिर प्रशासन की लापरवाही से वृक्ष संरक्षित नहीं किया गया और बुधवार की सुबह विशाल अक्षयवट वृक्ष ढह गया। मंदिर महंत परिवार में रोष व्याप्त है। वहीं काशी की जनता में भी इस घटना से आक्रोश है।

कंपनी व मंदिर प्रशासन की योगी से शिकायत करेगे महंत के परिजन
महंत परिवार ने उक्त प्रकरण के संदर्भ में सीएम योगी आदित्यनाथ से मिलकर मामले पर अपना विरोध जताने की बात कही है। वहीं, उक्त संदर्भ में राज्यमंत्री डॉ. नीलकंठ तिवारी को फोन करके शिकायत करने का महंत परिवार ने प्रयास किया तो उनका फोन नहीं उठा।

यह है काशी के अक्षयवट वृक्ष को लेकर प्राचीन मान्यता
अक्षयवट वृक्ष पूरे भारत वर्ष में तीन जगह पर विराजमान है। काशी, गया और प्रयाग। महंत बच्चा पाठक, नील कुमार मिश्रा और रमेश गिरी ने बताया कि गया में वृक्ष के नीचे पिंडदान करने का, प्रयागराज में सिर मुंडन कराने और काशी में इसी वृक्ष के नीचे दंडी स्वामी को भोजन कराने का महात्म्य है। तीनों स्थानों पर हनुमान जी तीन स्वरूप में विराजमान है। गया में बैठे है, प्रयागराज में लेटे है किले के अंदर और काशी में खड़े हनुमान जी है।

अक्षयवृट का गिरना है अशुभ, संत समाज में रोष
काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र में अचानक धराशायी हुए अक्षयवट वृक्ष की घटना अशुभसूचक है। काशी के संत समाज ने इस घटना पर रोष जताते हुए कहा कि यह काशी की जनता व संतों की आस्था का केंद्र था। घटना के दोषियों पर सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए। संत समाज का कहना है कि वृक्ष न होने से देवता तो मूर्ति स्वरूप रह सकते हैं लेकिन देवत्व भी नहीं रह जाता है।

बिना वृक्ष समाप्त हो जायेगा मंदिर का देवत्व: विद्वत परिषद
काशी विद्वत परिषद के संगठन मंत्री पं. दीपक मालवीय व ज्योतिषाचार्य पं. गणेश मिश्र ने बताया कि कृत्रिम अथवा अकृत्रिम जल उपवन से समन्वित स्थान के समीप देवताओं का आगमन होता है। देवालय के समीप वृक्ष अवश्य होना चाहिए, जिससे उन वृक्षों पर पक्षी बैठकर कलरव करें। तभी देवता उस मंदिर में निवास करते हैं। वृक्ष से युक्त मंदिरों में ही देवता विहार करते हैं। वृक्ष नहीं होने से मंदिर का देवत्व समाप्त हो जाता है। अत: मंदिर प्रशासन को चाहिए कि वह अक्षय वट की जगह दूसरा वट वृक्ष लगाएं।

निंदनीय है अक्षयवट वृक्ष का धराशायी होना अक्षयवट वृक्ष का धराशायी होना निंदनीय है। हमने आरंभ में ही कहा था कि पूज्यों की पूजा में व्यतिक्रम दुर्भिक्ष, मरण और भय लाता है। इसके पूर्व गोविन्देश्वर महादेव के पास का पीपल का हरा पेड़ काट दिया गया। कई प्राचीन कूप पाट दिए गए। 

स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती, राष्ट्रीय महामंत्री, अखिल भारतीय संत समाज ने कहा कि दोषियों पर हो सख्त कार्रवाई अक्षयवट वृक्ष के धराशायी होने की जितनी निंदा की जाए कम है। एक तरफ हम आक्सीजन की रक्षा की बात करते हैं और दूसरी तरफ इस तरह के अति प्राचीन धरोहरों को नष्ट कर रहे हैं। जो भी इस घटना के लिए दोषी है, उस पर सख्त कार्रवाई की जाए।

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