स्ट्रगल के दौरान रेड लाइट एरिया में रहने को मजबूर थे मशहूर सिंगर जावेद अली

वसीम अब्बासी

मुंबई। कहते हैं माया नगरी में अपना मुक़ाम बनाना आसान नहीं होता।  लेकिन मन में  कुछ करने की इच्छाशक्ति हो तो यक़ीनन एक दिन क़ामयाबी आपके क़दम चूमती है इस कथन को चरितार्थ कर दिखाया है बॉलीबुड में अपने हुनर के बल पर अपनी अलग पहचान रखने वाले मशहूर प्लेबैक सिंगर जावेद अली ने।

ज़ी पर टीवी प्रसारित सिंगिग टैलेंट शो ”सारेगामा पा ” के प्रसारण के दौरान जब सिंगर जावेद अली के स्ट्रगल के दिनों की स्टोरी को दिखाया गया। तब उनके संघर्ष के बारे में जानकर हर किसी की आँख नम हो गयी और हर किसी ने जावेद अली की मेहनत की सराहना की। 

चार दिन तक खाते थे एक बार की बनी दाल

जावेद अली ने बताया कि स्ट्रगल के दिनों में उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी।  हालांकि उन्होंने मायानगरी में ऐसा भी वक़्त देखा जब वह और उनके भाई पैसे के अभाव में एक बार दाल बनाकर उसे चार-चार दिन तक खाते थे।

जावेद अली ने बताया कि वह स्ट्रगल के दौरान कभी किसी रिश्तेदार के यहाँ चले जाते तो रिश्तेदार यह इंतज़ार करता था कि यह कब उठकर जाएंगे और हम खाना खाएं। उन्होंने बताया कि स्ट्रगल के वक़्त मुंबई में किसी रिश्तेदार ने उनका साथ नहीं दिया।

रेड लाइट एरिया में रहकर गुज़ारा वक़्त

जावेद अली ने बताया कि वह मुंबई में सन 2000 में आ गए थे जबकि उन्हें कामयाब होने में कई साल लग गए। इस दौरान उन्हें मजबूरन रेड लाइट एरिया व चिम्मट पाड़ा मरोल नाका पर रहना पड़ा जिसे वह कभी भी नही भूलना चाहते। वह आज भी अपने संघर्ष के दिनों की यादें ताज़ा करने के लिए वहां जाते हैं।

छोटी से परचून की दुकान पर आते थे काम देने वालों के फोन

जावेद अली के स्ट्रगल के दिनों में वह चिम्मट पाड़ा मरोल नाका में जहाँ रहते थे वहाँ एक छोटी सी परचून की दुकान पर लगे टेलीफोन का नम्बर उन्होंने सभी जगह दे रखा था। जहाँ से भी फोन आता परचून वाला आवाज़ लगाकर बात कराता था।

कम कमाई होने पर भी आधा हिस्सा भेजते थे माता-पिता के पास
जावेद अली बताते हैं कि स्ट्रगल के दिनों में भजन या ज़िंगल बगैरह गाने के लिए मिलते थे। जिससे बमुश्किल गुज़र होता था।  लेकिन घर के हालात बेहद ख़राब थे इसलिए जो भी रक़म कमाता था उसका आधा हिस्सा माता-पिता के पास भेजता था।

कामयाब होकर लौटायी मां की आँखों की रौशनी

जावेद अली की वालिदा देखने से माज़ूर थीं और बिल्कुल भी देख नही पाती थी, लेकिन जावेद ने अपनी वालिदा से यह वायदा किया था कि माँ मेरा दिन ज़रूर आएगा और उस दिन में तेरी आँखों का इलाज कराकर तुझे दुनिया दिखाऊंगा। 

जावेद अली की वालिदा की आँखों के ऑपरेशन के बाद उनकी आँखों की रोशनी लौट आयी है और ज़ी टीवी के सेट पर पहुँची जावेद अली की माँ ने उन्हें क़ामयाबी की दुआए देते हुए खुदा से दुआ की कि अल्लाह सभी को ऐसा बेटा अता फ़रमाए।

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