संघर्ष में चमकते सितारे, इंजीनियर की फैक्ट्री के नाम से फेमस है ये गांव

 

पटना। आज हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसे लोगो के बारे में जिन्होंने देश-विदेश में बिहार का गौरव बढ़ाया है। जानकारी के लिए आपको बता दें कि बिहार से ऐसी-ऐसी प्रतिभा निकली हैं, जिन्हें पूरी दुनिया आज भी सलाम करती है।

अपने पूर्वजों के गौरव को वर्तमान में ये बिहारी बढ़ा रहे हैं। बिहार के गया का पटवा टोली और रोहतास का बिक्रमगंज इंजीनियर का फैक्ट्री कहा जाता है। पटवा टोली के युवाओ ने ऐसा मिसाल पेश कर दी है जिसे दुनिया सलाम कर रही है। बिहार राज्य का एक और जिला रोहतास की चर्चा जोरों पर है। रोहतास के बिक्रमगंज के आरके श्रीवास्तव ने सिर्फ 1 रूपया में बना 540 स्टूडेंट्स को इंजीनियर बनाकर ये कमाल किया है।

माओवादी आंदोलन से ग्रसित पटवा टोली के कई बच्चे जेईई निकालकर अपनी आर्थिक स्थिति और जीवन स्तर को बदलने के सपने आंखों संजोए रहते हैं। इसी सपने को पूरा करने के लिए मेहनत करते हैं। खुद को ध्यान भटकाने वाली हर चीज से दूर रखकर, इनका पूरा ध्यान सिर्फ जेईई को क्वालीफाइ करने में रहता है और तेज आवाज करने वाली मशीनों के बीच बैठकर भी उन्होंने अपना ध्यान नहीं भटकने दिया।

बिहार के गया जिले में पटवा टोली के बुनकर थोक में दो चीजें बनाते हैं, रंगीन कपड़ा और इंजीनियर। एक जहां उनके पूर्वजों के समय से चला आ रहा पेशा है, वहीं दूसरा काफी हद तक मंदी का परिणाम है।

बच्चों के साथ साथ माता पिता ने भी अपना जीवन आईआईटी के लिए लगा दिया।

1990 के दशक में मंदी के बाद जब हैंडलूम सेक्टर में गिरावट आई थी, तब पटवा टोली के बुनकरों को अपने पारंपरिक व्यवसाय छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा।

उन्होंने रिक्शा चलाना, सब्जी बेचना और मजदूरी जैसे काम करना शुरू कर दिया, सौभाग्य से पटवा टोली के बच्चों ने देश की सबसे कठिन इंजीनियरिंग परीक्षा, आईआईटी-जेईई को पास करने के लिए दिन रात एक कर दिया और दुनिया को भूलकर इस एक्जाम को निकालने के लिए मेहनत करते रहे।

केसी ठाकुर के बेटे जितेंद्र प्रसाद ने 1991 में प्रतिष्ठित आईआईटी-जेईई की परीक्षा पास करके ट्रेंड सेट कर दिया। इसके बाद पड़ोस के ही अन्य बच्चों ने उनके कदमों का पालन करते हुए खुद को इस परीक्षा के लिए झोंक दिया। गांव के 1500 परिवारों ने अपने बच्चों को भारत में सबसे कठिन इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा के लिए तैयार करने का फैसला किया।

हालांकि पटवा टोली में बुनकरों का बड़ा तबका अभी भी गरीबी में गुजर बसर कर रहा है। लेकिन नई पीढ़ी ने नौकरी और शिक्षा को अपना लक्ष्य बनाकर अपनी आर्थिक स्थिति को बढ़ाने का फैसला किया।

पटवा टोली के बच्चे आम तौर पर प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए गया शहर में कोचिंग सेंटर में जाते हैं। छात्रों के सामने सबसे आम और बड़ी दिक्कत अंग्रेजी भाषा का न आना है। वे लोग घर पर हिंदी ही बोलते हैं, पर उनकी किताबें अंग्रेजी में होती हैं और इसके लिए वे एक शब्दकोश को लेकर बैठते हैं उससे अंग्रेजी सीखते हैं।

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