...और जब मुस्लिम बेटे के हाथ से हिंदू मां को मुक्ति मिली

कृष्णा कांत 
इमामुद्दीन का गंगा देवी से कोई रिश्ता नहीं था, लेकिन प्रेम रिश्ते का मोहताज नहीं होता। यह कहानी 33 साल पहले शुरू हुई थी। इमामुद्दीन और आयशा बानो मियां बीवी थे। दोनों मज़दूरी करते थे और एक हिंदू के घर में किराये पर रहते थे।

घर मालिक चंद्रभान की अचानक मौत हो गई। उनकी पत्नी गंगा देवी बेसहारा हो गईं। गंगा को कोई औलाद भी नहीं थी। भाग्य ने उनके साथ और खेल खेला। उन्हें लकवा मार गया।

गंगा की जिंदगी एक चारपाई में सिमट गई तो उनके अपनों ने भी उनका साथ छोड़ दिया। इमामुद्दीन के बचपन में ही सिर से मां का साया उठ गया था। उन्हें गंगा देवी में अपनी मां दिखाई दी। इमामुद्दीन और उनकी बीवी आयशा दोनों बेघर मज़दूर थे तो क्या हुआ, दिल में खूब जगह थी। दोनों ने गंगा देवी की देखभाल शुरू कर दी।

गंगा के इलाज पर मोटा माल खर्च हुआ जिसके लिए इमामुद्दीन ने अपनी जमा पूंजी सब खर्च कर दी। दोनों मियां बीवी मजदूरी करते और साथ साथ गंगा की सेवा भी। आयशा और इमामुद्दीन के लिए गंगा अब उनकी मां थी। उन्हें नहलाना, कपड़े बदलना, अपने हाथों से खाना खिलाना, दवा कराना, सारी जिम्मेदारी इन दोनों की थी।

साथ लंबा हुआ तो रिश्ता और गाढ़ा होता गया। आयशा बहू की तरह मां के पैर दबाती तो बेटा इमामुद्दीन उन्हें कुर्सी पर बैठाकर घुमा लाता। ऐसा वे किसी दबाव या लालच में नहीं कर रहे थे।

समय बीतता गया। इमामुद्दीन ने अपना छोटा सा घर बनवा लिया। तब तक गंगा का घर भी खंडहर हो गया था। अब गंगा इमामुद्दीन के साथ नये घर में आ गईं।

इमामुद्दीन से लोगों ने पूछा कि ये सब करने की क्या ज़रूरत है? इमामुद्दीन ने कहा, उसे मेरी नहीं, मुझे उसकी जरूरत है।

गंगा लोगों से कहतीं, भगवान ने मुझे औलाद नहीं दी थी, लेकिन अब मिल गई है। अब यही दोनों मेरे बहू बेटे हैं।

लकवा मारने के बाद गंगा देवी ने 33 साल लंबी ज़िंदगी जी। इमामुद्दीन पति-पत्नी ने उनकी खूब सेवा की। पिछले साल यानी 2019 में गंगा की मौत हो गई।

जब देश भर में हिंदू मुस्लिम का खेला चल रहा है, तब इमामुद्दीन ने गंगा का हिंदू रीति से अंतिम संस्कार किया और गंगा की अस्थियां हरिद्वार में विसर्जित करने गए। उन्होंने दान-पुण्य क्रिया-कर्म सब वैसे ही निभाया जैसा उनका अपना बेटा करता।

इमामुद्दीन ने बुढ़िया गंगा को मथुरा काशी के वृद्धाश्रम में नहीं डाला। ताउम्र उसकी सेवा की। अंत समय गंगा की अस्थियां गंगा नदी में मिल गईं और हिंदुओं की देवी गंगा ने इमामुद्दीन के हाथ से अस्थि कलश स्वीकार किया।

यह कहानी काल्पनिक नहीं है। यह कहानी राजस्थान के नीमकाथाना की है, जिसके पड़ोसी राज्य से शुरू हुआ नफरत और बंटवारे का कारोबार आज पूरे देश को त्रस्त किये हुए है।

ये कहानी पिछले साल लिखी थी। हमारे देश में आजकल नफ़रतें खूब वायरल होती हैं, लेकिन असल जिंदगी मोहब्बतों से चल रही है। असल दुनिया में मोहब्बतें न सिर्फ ज़िंदा हैं, बल्कि दुनिया को खूबसूरत बनाये हुए हैं।
(ये लेखक के निजी विचार हैं, UPUKLive की सहमति आवश्यक नहीं)

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