कृष्णकांत किसानों की बेटियां ट्रैक्टर चलाने की ट्रेनिंग ले रही हैं. उन्होंने स्टेयरिंग थाम ली है और साथ में आंदोलन की कमान भी. गणतंत्र दिव...

किसानों की बेटियां ट्रैक्टर चलाने की ट्रेनिंग ले रही हैं. उन्होंने स्टेयरिंग थाम ली है और साथ में आंदोलन की कमान भी. गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर मार्च में हिस्सा लेने के लिए वे दिल्ली कूच करेंगी.
उनका कहना है, "ट्रैक्टर परेड में हिस्सा लेने के लिए अपने ट्रैक्टर के साथ हम लाल किला जाएंगे. ये ऐतिहासिक घटना होगी... अब इस लड़ाई में महिलाशक्ति उतर चुकी है. हमें हल्के में न लें. ये आज़ादी की दूसरी लड़ाई है. अगर हम आज नहीं लड़े तो आने वाली पीढ़ियों को क्या जवाब देंगे?... मैं एक किसान की बेटी हूं. सरकार ने पहले ही किसानों को बहुत प्रताड़ित किया है, हम अब और नहीं सहेंगे..."
जो किसान दिल्ली के बॉर्डर पर हैं, उनका घर, उनकी खेती भी उनकी बेटियां संभाल रही हैं.
सरकार इस आंदोलन को मुट्ठी भर किसानों का आंदोलन समझने की भूल कर रही है. सरकार अब भी ये जताने की कोशिश कर रही है कि ये विपक्ष के भड़काए हुए मुठ्ठी भर किसान हैं.
तकरीबन 60 लोगों की जान गंवाने के बाद भी किसान पीछे हटने को तैयार नहीं हैं. बल्कि उनकी बेटियां, औरतें भी इसमें भागीदारी करने को तैयार हैं.
अमेरिका और यूरोप में फेल हो चुकी कॉन्ट्रैक्ट खेती और निजीकरण की व्यवस्था लागू करने के लिए सरकार इतनी जल्दबाजी में क्यों है. सरकार को अपने विवेक का इस्तेमाल करने और जनता की बात सुनने का हुनर सीखना चाहिए. तानाशाही अहंकार स्थिति को और बिगड़ेगा.
(ये लेखक के निजी विचार हैं, UPUKLive की सहमति आवश्यक नहीं)