आवश्यक है झूठी बातों का खण्डन करना

हरदीप एस पुरी 
आईपीएन। कृषि सुधारों की आवश्यपकता, तर्क और  कालक्रम को समझना महत्व्पूर्ण है। चारों तरफकड़वा झूठ फैलाया जा रहा है। सुधारों के बारे में प्रचारित की जा रही झूठी बातों के बीच एक बात यह फैलायी जा रही है कि ‘एमएसपी हटा दिया जाएगा’। 
मोदी सरकार ने एमएसपी को उपज की लागत से 1.5 गुना बढ़ाने संबंधी स्वानमीनाथन समिति की सिफारिशों को केवल लागू ही नहीं किया है, बल्कि उसने सभी फसलों के मामलों में एमएसपी को 40-70 प्रतिशत की रेंज में बढ़ा भी दिया है और एमएसपी पर खरीद का खर्च 2009-14 से 2014-19 में 85 प्रतिशत तक बढ़ गया है। इतने वर्षों में कृषि विभाग का बजट भी छह गुना बढ़ चुका है। 
एमएसपी एक प्रशासनिक व्य वस्थान है। यदि सरकार को एमएसपी हटाना ही होता, तो वह इन तीन कानूनों को, विशेष तौर पर व्यउवस्था्गत सुधार लाने से संबंधित कानूनों कोप्रस्तुवत ही क्यों  करती? यदि एमएसपी हटाने का उसका कोई विचार होता, तो वह पिछले पांच वर्षों के दौरान एमएसपी को बढ़ाती क्यों रहती?
किसानों की हालत का हवाला देते हुए 2015 में श्री राहुल गांधी ने लोकसभा में कहा था दृ‘कुछ साल पहले, एक किसान ने मुझसे पूछा था कि10 रुपये में बिकने वाले चिप्सक पर क्या  लागत आती है, जबकि वह 2 रुपये किलोग्राम की दर पर आलू बेचता है। यदि हम अपनी उपज सीधे फैक्टषरियों को देंगे, तो बिचौलिए मुनाफा  नहीं उठा पाएंगे।’ 
सोशल मीडिया पर ऐसा आपत्तिजनक और बेबुनियाद झूठ फैलाया जा रहा है कि किसानों की जमीन कम्प नियों द्वारा हथिया ली जाएगी। इन कानूनों मेंकई स्तिरों पर विशेषकर हमारे किसानों की सुरक्षा के प्रावधान किए गए हैं, ताकि किसान,कम्परनियों के किसी भी प्रकार के अनुचित दावों का मुकाबला कर सकें। इतना ही नहीं, हमने कानूनों में स्पनष्टष तौर पर कहा है कि किसी भी मामले में हमारे किसानों की जमीन का अधिग्रहण अथवा उन्हेंय पट्टे पर लिए जाने की इजाजत नहीं होगी। हमारे किसान अपनी जमीन, मिट्टी और वनों के संरक्षक हैं और जमीन वास्तमव में उनकी मां के समान है। उन्होंवने इसकी देखरेख के लिए अपना जीवन समर्पित किया है, खून और पसीना बहाया है। उनकी मां सुरक्षित है। हम किसी को भी उनकी जमीन हड़पने की इजाजत नहीं देंगे। 
कम्पपनियों के पास आज विविध प्रकार के ऐसे व्याकपक क्षेत्र हैं, जहां काम वे काम कर सकती हैं और कृषि यकीनन मौजूदा समय में ज्याखदा मुनाफे का उपक्रम नहीं है। ऐसे में यह कहना हास्योस्पाद है कि कम्पिनियां आएंगी और हमारे किसानों की लागत पर बहुत सारा पैसा कमाएंगी। हमें अपनी कृषि आपूर्ति श्रृंखला में कम्प नियों की जरूरत है, क्योंवकि वे ग्रामीण लचीलापन (या रूरल रिज़िल्यन्स) तैयार करने में सहायता करते हुए इनपुट और उत्पा दों के परीक्षण, उत्पाहदित पैदावार के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण और आवश्य्क बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच बनाने के संदर्भ में मूल्य  वर्धन करेंगी, जो हमारी भावी पीढ़ियों के लिए महत्वापूर्ण है। उदाहरण के लिए, केन्या में यूनीलीवर केन्यास टी डेवलपमेंट एजेंसी लिमिटेड (केटीडीए) के साथ मिलकर लचीलापन तैयार करने तथा सीमांत किसानों को आर्थिक रूप से सशक्ता बनाने के लिए कार्य कर रही है। क्या हमें भारतीय कृषि में इसी तरह के अनेक कदम उठाने की जरूरत नहीं है?
अमूल कोपरेटिव की कामयाबी ने साबित कर दिया है कि मौजूदा दौर में किसी भी क्षेत्र में छोटे पैमाने की उत्पांदन प्रणाली में असमानता होने के बावजूद, लोग एक साथ आ कर प्रबल कामयाबी की दास्ताहन रच सकते हैं। आज, अमूल केवल दूध का ही उत्पा दन नहीं कर रहा, बल्कि उसको ज्या दातर राजस्वन दुनिया भर में निर्यात किए जा रहे उसके प्रसंस्कृत उत्पादों से प्राप्तष हो रहा है। इन सुधारों के जरिये हम अपने किसानों के लिए भी इसी तरह की कामयाबी की दास्ता न रचना चाहते हैं। हमारी सरकार ने 10,000 किसान उत्पोदक संगठनों का गठन किया है, जो छोटे और सीमांत किसानों को एक साथ लाते हैं और उन्हें सामाजिक पूंजी, सूचना तथा मोल-भाव करने का सामर्थ्या प्रदान करते हैं। 
इसी दिशा में कई अन्या कदम उठाए गए हैं। प्रधानमंत्री ने महाराष्ट्रा से बंगाल तक 100वीं किसान रेल लॉन्चं की है, जिसमें किसान अपने 50-100 किलोग्राम उत्पादि कोल्ड  चैन कोचों में भेज सकते हैं। एक लाख करोड़ रुपये राशि के कृषि अवसंरचना कोष की स्था पना की गई है, ताकि गोदामों, कोल्ड  स्टोदर्स, छंटाई, ग्रेडिंग और पैकेजिंग इकाइयों, ग्रामीण विपणन मंचों, ई-मार्केटिंग इकाइयों आदि जैसीआवश्यकक बुनियादी सुविधाओं का निर्माण करने के लिए पूंजी उपलब्धत कराई जा सके।
किसान सम्मा न निधि (इसके अंतर्गत 1,10,000 करोड़ रुपये की राशि का भुगतान पहले हीकिया जा चुका है) हमारे किसानों की गरिमा की रक्षा करते हुए उनकी सहायता करती है और जीविका के मसलों को कम करती है, जिसके कारण हमारे छोटे और सीमांत किसानों को बहुत तकलीफें उठानी पड़ती थीं।  
हमने सुदृढ़ फसल बीमा व्यीवस्थाल- प्रधानमंत्री किसान फसल बीमा योजना तैयार की है, जिसने 17,450 करोड़ रुपये के प्रीमियम पर  किसानों को बीमे के रूप में  87,000 करोड़ रुपये की राशि का भुगतान किया है। 
हम जानते हैं कि पंजाब और हरियाणा भारत के अन्नश-भंडार हैं। वे राष्ट्री य खाद्यान्नह उत्पानदन के लगभग 30 प्रतिशत भाग के लिए उत्त रदायी हैं और हमारी लगभग 70 प्रतिशत एमएसपी खरीद इन्हीं राज्यों से होती है। राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड)  द्वारा 2018 में किया गया अध्यीयन दर्शाता है कि खेती बाड़ी करने वाले सभी परिवारों में से 52.5 प्रतिशत परिवार कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं, जिन पर औसतन 1,470 डॉलर का कर्ज है। उस पर, खराब हो जानेवाली उपज की रक्षा के लिए आवश्यिक उचित  कोल्ड. चेन के अभाव में उत्पाबदित फसलों का 30 प्रतिशत हिस्सान बर्बाद हो जाता है। इसके अलावा, अनेक बिचौलियों के कारणकृषि क्षेत्र में बहुत असमानता है, जो अक्सेर मोटा मुनाफा कमाते हैं। 
हमेशा सिख गुरुओं से प्रेरणा लेने वाले प्रधानमंत्री मोदी जी को जपजी साहिब की 38वीं पौड़ी का पालन करते हुए देखा जा सकता है। वह ऐसा सुनार बनने का प्रयास करते हैं, जो उद्देश्यब के प्रति पूरी ईमानदारी, हृदय की शुद्धता, संयम और मजबूत इच्छार शक्ति के साथ खेतीबाड़ी करने वाले हमारे किसान भाइयों और बहनों की भलाई के लिए कृषि रूपी सोने को खूबसूरत आभूषणों के सांचे में ढालना चाहते हैं। उनका लक्ष्यच किसानों की जेब में और ज्या दा पैसा डालना, उन्हेंल कर्ज के बोझ से छुटकारा दिलाना, पैसा कमाने और रोजगार करने के लिए नए क्षेत्र तैयार करना और उनके लाभ के लिए कम्पकनियों सहित प्रत्येक उपलब्धं आर्थिक कारक का इस्तेरमाल करना है। 
हमारे मेहनतकश किसान कृषि गहन राज्यों को दुनिया के अन्ने-भंडारों में तब्दी ल कर सकते हैं। कृषि सुधार कानूनों का उद्देश्य् उनकी सहायता के लिए सही व्यरवस्थान तैयार करना, उनका मार्गदर्शन करना तथा उन्हें आत्मतनिर्भर बनाना है।  

( लेखक केंद्रीय मंत्रिपरिषद के सदस्य हैं। उपर्युक्त आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं। आवश्यक नहीं है कि इन विचारों से UPUKLive भी सहमत हो। )

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