क्या है ये रंडुआ प्रथा: जिसमें मर्द को भाभी के साथ सोने की थी छूट!

आमतौर पर रंडुआ उस व्यक्ति को बोला जाता है जिसकी पत्नी का देहांत हो गया हो. लेकिन गांव में ‘रंडुआ’ शब्द का प्रयोग उस व्यक्ति के लिए भी किया जाता है, जिसकी काफी ज्यादा उम्र तक शादी नहीं हुई हो.
रंडुआ प्रथा की एक बहुत हीं कड़वी सच्चाई हम आपको बता रहे हैं, जिसे जानकर आपके मुंह से एक बार तो भगवान का नाम जरुर निकल आएगा.
ये सच्ची कहानी है पश्चिम उत्तर प्रदेश की. जो काफी लंबे समय तक गुंडागर्दी का गढ़ माना जाता था. यहां के लोगों की जिंदगी खेती पर हीं निर्भर थी. और इसलिए उस खेती के लिए लोग जान तक लेने को उतारू हो जाते थे. जान लेना तो फिर भी एक आम बात लगती है. क्योंकि जमीन – जायदाद के लिए इस तरह की घटनाएं आए दिन सुनने को मिलती रहती है. लेकिन ये रंडुआ प्रथा तो हमारे भारत देश की संस्कृति के बिल्कुल खिलाफ थी. ऐसी प्रथा जिसमें अपनी हीं पत्नी का बंटवारा करना पड़ जाए. वो भी सिर्फ अपनी संपत्ति को बंटवारा होने से बचाने के लिए.
कितनी हैरत की बात है कि, जिस भारत देश में औरतों की इज्जत की खातिर पति और औरत खुद कुछ भी करने को तैयार हो, उसी भारत देश के एक गांव में रंडुआ प्रथा की घिनौनी करतूत को खुलेआम बढ़ावा दिया जा रहा हो.
क्या है यह रंडुआ प्रथा?
पश्चिम उत्तर प्रदेश के कुछ गांव में गरीबी इस कदर अपना पैर फैलाए हुए थी, कि लोगों के पास खेती के सिवा दूसरा कोई साधन नहीं हुआ करता था. इसलिए अपनी जमीन को बंटवारा होने से बचाने की खातिर भाई अपने दूसरे भाई से अपनी पत्नी का हीं बंटवारा कर लेता था.
दोस्तों ये प्रथा वर्तमान में चल रही है या नहीं इस बात की पुष्टि मैं नहीं कर सकती. लेकिन लगभग 20 साल पहले तक रंडुआ प्रथा काफी प्रचलन में थी.
घर का एक भाई अगर शादी कर लेता था, तो दूसरा भाई शादी नहीं करता. मतलब साफ है कि अगर दूसरा भाई शादी करता तो उसका भी अपना परिवार हो जाता. पत्नी आती. फिर बच्चे होते, और जमीन का बंटवारा उन्हें करना पड़ता. इसलिए गरीबी के कारण लोग अपनी जमीन को ज्यादा लोगों में बंटने से बचाने की खातिर पत्नी का हीं बंटवारा कर लेते थे.
इससे होता ये था कि रंडुआ भाई को भी, यानी कि जिसकी शादी नहीं हुई है, उसे भी इस बात की आपत्ति नहीं होती कि उसने शादी नहीं की. एक हीं पत्नी से दूसरे भाई को भी पत्नी का सुख मिल जाया करता था. और उनकी जमीन भी बच जाती.
इसलिए कुंआरे भाई को पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाने की पूरी आजादी दे दी जाती थी.
इस प्रथा में एक और बात थी कि अगर शादीशुदा भाई की किसी कारण से मौत हो जाती थी, तो इस परिस्थिति में मरे हुए भाई की विधवा पत्नी के साथ रंडुआ भाई बिना शादी किए हीं अपनी विधवा भाभी के साथ वो हर सुख प्राप्त कर सकता था, जो अपनी बीवी से करता. और उसकी इच्छा होती तो वो अपने विधवा भाभी से शादी भी कर सकता था.
साल 1999 में एक अध्ययन के मुताबिक उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर, बाघपत और मेरठ में इस तरह की प्रथा आम बात थी. जिसे या तो द्रोपति प्रथा या फिर रंडुआ प्रथा का नाम दिया जाता था. गांव के जाट परिवारों में जो गरीबी की दौर से गुजरते थे, उनमें ये प्रथा आम थी.
एक जाट लीडर की माने तो रंडुए व्यक्ति को भाई की पत्नी के साथ संबंध बनाने की आजादी आम बात है. परिवार इसी अरेंजमेंट के साथ काफी प्यार से मिल-जुलकर रहते हैं.
कहा जाता है कि जब तक रंडुआ भाई परिवार के साथ अच्छे से मिल-जुलकर रहता, तब तक तो सब ठीक-ठाक चलता रहता. लेकिन अगर वह भाई अपनी जमीन किसी और के नाम करना चाहे तो उसका परिवार फिर उसका दुश्मन भी बन बैठता था. और कई बार तो ऐसा भी होता कि इस परिस्थिति में जमीन की खातिर भाई ने भाई की हत्या कर दी. कई  शादी-शुदा भाई सिर्फ इसलिए भी कुंआरे भाई को मार देता था, ताकि पूरी जमीन जल्द – से – जल्द सिर्फ उसी के नाम रह जाए, या फिर इस डर से भी भाई की हत्या कर देता था कि कहीं वो भी अपनी शादी ना कर बैठे.
साल 1994 के एक पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक सिर्फ 1 महीने में 65 हत्याएं हुईं, जिनमें 40 हत्याएं अधेड़ उम्र के शादीशुदा व्यक्ति की हुई थी. और ये समय था जब पुलिस ने रंडुआ रजिस्टर मेंटेन करना शुरू हीं किया था.
पुलिस के रिकॉर्ड के अनुसार उन दिनों मुजफ्फरनगर, बागपत और मेरठ में कुल 1500 रंडुए थे. रंडुआ परिवार का छोटा भाई भी हुआ करता था, तो भी उसे पिता जैसी इज्जत दी जाती थी. अगर ऐसे में परिवार के शादीशुदा व्यक्ति की मृत्यु हो जाती तो, उसकी पत्नी पर नैसर्गिक रूप से उस रंडुए भाई का पूरा अधिकार होता था. इस हालत में विधवा औरत के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं होता. और उसे अपने देवर या जेठ के साथ हर हाल में रहना हीं पड़ता था.
दोस्तों सीधी सी बात है कि गरीबी ने हर किसी को इस कदर मजबूर कर रखा था, कि उन्हें जिंदगी जीने के जो रास्ते दिखाई दीए उन लोगों ने उसे हीं किया.
लेकिन धीरे-धीरे बदलते समाज ने तरक्की करनी शुरू कर दी, और लड़कियां भी पढ़ – लिख कर आगे बढ़ने लगी. ऐसे में रंडुआ प्रथा जैसी घिनौनी प्रथा का धीरे-धीरे खात्मा होता चला गया.

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